मुझे अकेले पन में साथी
याद तुम्हारी कैसे आती
आँसू रहकर इन आँखों में अपना कैसे नीड़ बनाते?
यदि तुम मुझसे दूर न जाते!

तुम हो सूरज-चाँद ज़मीं पर
किसका क्या अधिकार किसी पर
मेरा मन रखने की ख़ातिर तुम जग को कैसे ठुकराते?
यदि तुम मुझसे दूर न जाते!

आँख आज भी इतनी नम है
जैसे अभी-अभी का गम है
ताज़ा-सा यह घाव न होता, मित्र तुम्हें हम गीत सुनाते!
यदि तुम मुझसे दूर न जाते!

पल-भर तुमने प्यार किया है
यही बहुत उपकार किया है
इस दौलत के आगे साथी किस दौलत को गले लगाते?
यदि तुम मुझसे दूर न जाते!

तुम आओ तो सेज सजाऊँ
तेरे संग भैरवी गाऊँ
यह मिलने की चाह न होती तो मरघट का साथ निभाते!
यदि तुम मुझसे दूर न जाते!

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